इधर आओ जी भर के

इधर आओ जी भर के हुनर आज़माएँ, तुम तीर आज़माओ, हम ज़िग़र आज़माएँ..

ख़ुद को बिखरते देखते हैं

ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं

ज़िंदगी कम लगे

ज़िंदगी कम लगे ऐसी मोहब्बत चाहिए, मुझे अपने वजूद की पूरी कीमत चाहिए…!

और भी शेर है

और भी शेर है लिखने को तिरंगा तो कम से कम साफ़ रहने दो भाई

ये बात मुझे आज तक

ये बात मुझे आज तक समझ नहीं आई.. तुमहे मैं “सुकुन” बुलाऊ या “बेचैनी”..

कब आ रहे हो

कब आ रहे हो मुलाकात के लिये, हमने चाँद रोका है, एक रात के लिये…!!

तुम तो फुहार सी थीं….

तुम तो फुहार सी थीं…. पर तुम्हारी यादें… मूसलाधार हैं…

कभी हूँ हर खुशी की

कभी हूँ हर खुशी की राह में दीवार काँटों की, कभी हर दर्द के मारे की आँखों की नमी हूँ मैं….

दबे पाँव आती रही

दबे पाँव आती रही यादें सब तुम्हारी, एक बार भी यादों के संग तुम नहीं आये…

ज़ख्म ख़ुद सारी कहानी

ज़ख्म ख़ुद सारी कहानी कह रहे हैं ज़ुल्म की, क्या करें फिर भी अदालत को गवाही चाहिए…

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