अलग दुनिया से हटकर भी कोई दुनिया है मुझमें, फ़क़त रहमत है उसकी और क्या मेरा है मुझमें. मैं अपनी मौज में बहता रहा हूँ सूख कर भी, ख़ुदा ही जानता है कौनसा दरिया है मुझमें. इमारत तो बड़ी है पर कहाँ इसमें रहूँ मैं, न हो जिसमें घुटन वो कौनसा कमरा है मुझमें. दिलासों… Continue reading मेरा है मुझमें
Category: व्यंग्य शायरी
जिस दिन अपने
जिस दिन अपने कमाए हुए पैसों से जीना सीख जायोगे , उस दिन आपके शौक अपने आप कम हो जायेंगे..!!
बहुत दूर की बात हैं
फ्री में हम किसी को ‘गाली’ तक नहीं देते…,,, ‘स्माइल’ तो बहुत दूर की बात हैं…!!!
पूरी दुनिया नफ़रतों
पूरी दुनिया नफ़रतों में जल रही है.. इसीलिए इस बार ठण्ड कम लग रही है।
ए ज़िन्दगी तेरे
ए ज़िन्दगी तेरे जज़्बे को सलाम, पता है कि मंज़िल मौत है, फिर भी दौड़ रही है…!
जंजीर से डर लगता
उल्फत की जंजीर से डर लगता हैं, कुछ अपनी ही तकदीर से डर लगता हैं, जो जुदा करते हैं, किसी को किसी से, हाथ की बस उसी लकीर से डर लगता हैं..
मासूमियत को मार ङाला
मेरी समझदारियोँ ने मेरी मासूमियत को मार ङाला… – तुझे अब भी शिकायत है कि मैँ तुझे समझता नहीँ…!!!
सही होना चाहिए
बन्दा खुद की नज़र में सही होना चाहिए… दुनिया तो भगवान से भी दुखी है |
बीतता वक़्त
बीतता वक़्त है लेकिन, खर्च हम हो जाते हैं ।
जौर तो ऐ
जौर तो ऐ ‘जोश’ आखिर जौर था, लुत्फ भी उनका सितम ढाता रहा।