उम्र का बढ़ना

उम्र का बढ़ना तो दस्तूर- ए जहाँ है मगर महसूस ना करो तो उम्र बढ़ती कहाँ है ?

मेरे खेत की मिट्टी

मेरे खेत की मिट्टी से पलता है तेरे शहर का पेट मेरा नादान गाँव अब भी उलझा है कर्ज की किश्तों में..

दर्द आसानी से

दर्द आसानी से कब ‘पहलू’ बदल के निकला आँख का तिनका बहुत आँख ‘मसल’ के निकला..

कितनीं मोहब्बत हैं

कितनीं मोहब्बत हैं तुमसे कोई सफाई नहीं देंगें… साये की तरह साथ रहेंगे पर दिखाई नहीं देंगें……!!!!!!

मुकम्मल हो ही नहीं

मुकम्मल हो ही नहीं पाती कभी तालीमे मोहब्बत… यहाँ उस्ताद भी ताउम्र एक शागिर्द रहता है…!!

बटुए को कहाँ मालूम

बटुए को कहाँ मालूम पैसे उधार के हैं… वो तो बस फूला ही रहता है अपने गुमान में।।

ऐसा तो कभी हुआ नहीं

ऐसा तो कभी हुआ नहीं, गले भी मिले, और छुआ नहीं!

मेरी कमजोरी न समझना…

मेरी नरमी को मेरी कमजोरी न समझना…. ऐ नादान, सर झुका के चलता हूँ तो सिर्फ ऊपर वाले के खौफ से…।

मिले जब चार कंधे

मिले जब चार कंधे तो दिल ने ये कहा मुझसे…जीते जी मिला होता तो…..एक ही काफी था…

दरवाजे पर लिखा था..

दरवाजे पर लिखा था…मुझे बुलाना मत, मैं बहुत दुखी हूँ सच्चा मित्र अंदर जाकर बोला…मुझे पढ़ना नहीं आता है।।

Exit mobile version