मोहब्बतों का ज़िक्र

मोहब्बतों का ज़िक्र करते हैं कमजर्फ़ ही अक्सर, जिनकी इबादतें हैं वो ख़ामोश रहा करते हैं…

तेरी हसरतें भी

तेरी हसरतें भी आ बसीं आखिर, मेरी ख्वाहिशों की यतीम कहानी में |

सामने होते हुए भी

सामने होते हुए भी तुझसे दूर रहना.. बेबसी की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी…

एक पुरानी तस्वीर

एक पुरानी तस्वीर जिसमे तुमने बिंदी लगाई है…. मै अक्सर उसे रात में चाँद समझ के देख लेता हूँ…

बुरा शख्स भी

बुरा शख्स भी भला लगता हैं,,,, इश्क शायद इसी को कहते हैं….

मुझे रख लो

बुरे दिन के सबक ने ये कहा था . . मुझे रख लो जरूरी वाकया हूँ|

हमें पता है …

हमें पता है …तुम… कहीं और के मुसाफिर हो .. हमारा शहर तो.. बस यूँ ही… रास्ते में आया था..!!

चुप चुप सा है

चुप चुप सा है वो………… . . बहुत कुछ कहना होगा……शायद उसे

आईना देख के

आईना देख के, हैरत में न पड़िये साहब; . . . . आप में कुछ नहीं, शीशे में बुराई होगी!

बिन धागे की सुई

बिन धागे की सुई सी है ये ज़िंदगी….. सिलती कुछ नहीं, बस चुभती जा रही है.

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