ताल्लुकात बढ़ाने हैं

ताल्लुकात बढ़ाने हैं तो कुछ आदतें बुरी भी सीख लो..ऐब न हों.. तो लोग महफ़िलों में भी नहीं बुलाते…

तेरी मोहब्बत तो

तेरी मोहब्बत तो जैसे सरकारी नौकरी हो, नौकरी तो खत्म हुयी अब दर्द मिल रहा है पेंशन की तरह!

तकदीरें बदल जाती हैं

तकदीरें बदल जाती हैं जब ज़िंदगी का कोई मकसद हो, वरना ज़िंदगी कट ही जाती है तकदीरों को इल्ज़ाम देते देते!

दुरुस्त कर ही लिया

दुरुस्त कर ही लिया मैंने नज़रिया अपना, कि दर्द न हो तो मोहब्बत मज़ाक लगती है!

न जाने कौन सी दौलत है

न जाने कौन सी दौलत है तेरे लफ़्ज़ों में, बात करते हो तो दिल खरीद लेते हो!

सरेआम न सही

सरेआम न सही फिर भी रंजिश सी निभाते है.. किसी के कहने से आते किसी के कहने से चले जाते..

बहुत आसाँ हैं

बहुत आसाँ हैं आदमी का क़त्ल मेरे मुल्क में, सियासी रंजिश का नाम लेकर घर जला डालो…..

कितने गम दिये मैंने

कितने गम दिये मैंने, कितनी खुशी दी तुमने, मार्च का महीना आ गया है आ तू भी हिसाब कर ले…

मेरी ख़ामोशी की

मेरी ख़ामोशी की ख्वाहिश भी तुम, मेरी मोहब्बत की रंजिश भी तुम….

किस्सा बना दिया

किस्सा बना दिया एक झटके में उसने मुझे, जो कल तक मुझे अपना हिस्सा बताता था !!

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