खुदगर्ज़ बना देती है तलब की शिद्दत भी,, प्यासे को कोई दूसरा प्यासा नहीं लगता..।।
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ग़लतफहमी की गुंजाइश
ग़लतफहमी की गुंजाइश नहीं सच्ची मुहब्बत में जहाँ किरदार हल्का हो कहानी डूब जाती है..
कभी तुमने हँसाया है
कभी तुमने हँसाया है कभी तुमने रुलाया है, मग़र हर बार तुमने ही मुझे दिल से लगाया है। नहीं कोई ग़िला तुमसे नहीं कोई शिक़ायत है, तुम्हीं ने रातभर जगके मुझे सुख से सुलाया है।।
एक नाराज़गी सी है
एक नाराज़गी सी है ज़ेहन में ज़रूर, पर मैं ख़फ़ा किसी से नहीं…
अब तो पत्थर भी
अब तो पत्थर भी बचने लगे है मुझसे, कहते है अब तो ठोकर खाना छोड़ दे !
सभी ज़िंदगी के मज़े
सभी ज़िंदगी के मज़े लूटते हैं,,, न आया हमें ये हुनर ज़िंदगी भर…
नब्ज़ में नुकसान
नब्ज़ में नुकसान बह रहा है लगता है दिल में इश्क़ पल रहा है…!!
आँखों से पिघल कर
आँखों से पिघल कर गिरने लगी हैं तमाम ख़्वाहिशें कोई समंदर से जाकर कह दे कि आके समेट ले इस दरिया को…!!
हम जिसके साथ
हम जिसके साथ वक्त को भूल जाते थे, वो वक्त के साथ हमको भूल गया…!!
मिसाल-ए-आतिश
मिसाल-ए-आतिश है ये रोग-ए-मुहब्बत … रौशन तो खूब करता है … मगर “जला जला” कर … !!