वैसे ही दिन वैसी ही रातें ग़ालिब, वही रोज का फ़साना लगता है महीना भी नहीं गुजरा और यह साल अभी से पुराना लगता है……
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हमको अब उनका…
हमको अब उनका…. वास्ता ना दीजिए …. हमारा अब उनसे…. वास्ता नहीं…
जाता हुआ मौसम लौटकर
जाता हुआ मौसम लौटकर आया है. …. काश वो भी कोशिश करके देखे…!!
अब कोई नक्शा नही
अब कोई नक्शा नही उतरेगा इस दिल की दीवार पर….!! तेरी तस्वीर बनाकर कलम तोड़ दी मैंने…
बस ये कहकर
बस ये कहकर टाँके लगा दिये उस हकीम ने..कि जो अंदर बिखरा है उसे खुदा भी नहीं समेट सकता..!!
आज फिर मुमकिन नही
आज फिर मुमकिन नही कि मैं सो जाऊँ… यादें फिर बहुत आ रही हैं नींदें उड़ाने वाली
उसने अपने दिल के
उसने अपने दिल के अंदर जब से नफरत पाली है। ऊपर ऊपर रौब झलकता अंदर खाली खाली है।।
जरा ठहर ऐ जिंदगी
जरा ठहर ऐ जिंदगी तुझे भी सुलझा दूंगा, पहले उसे तो मना लूं जिसकी वजह से तू उलझी है !!
उम्मीद न कर इस दुनिया मेँ
उम्मीद न कर इस दुनिया मेँ, किसी से हमदर्दी की..!! बड़े प्यार से जख्म देते हैँ, शिद्दत से चाहने वाले…!!
देते नहीं दाद ….
देते नहीं दाद …. कभी वो कलाम पे मेरे, जुड़ न जाए कहीं नाम उनका नाम से मेरे