ग़लत-फ़हमियों में जवानी गुज़ारी कभी वो न समझे कभी हम न समझे…
Tag: शर्म शायरी
परिंदों को तो
परिंदों को तो खैर रोज कहीं से, गिरे हुए दाने जुटाने हैं पर वो क्यों परेशान हैं, जिनके भरे हुए तहखाने हैं|
पा सकेंगे न उम्र भर
पा सकेंगे न उम्र भर जिसको जुस्तुजू आज भी उसी की है।
अक्सर ज़माना छोङ देता है
मुसीबत में तो साथ अक्सर ज़माना छोङ देता है, जो अपना है वो पहले आना जाना छोङ देता है। हमारी दास्ताने जिन्दगी इक बार जो सुन ले, तो फिर वो जिन्दगी भर मुस्कराना छोङ देता है।
दुनिया से तनहा लड़ोगे….
दुनिया से तनहा लड़ोगे…. बच्चों सी बाते करते हो…..
जीत लेते हैं
जीत लेते हैं सैकड़ो लोगों का दिल शायरी करके..! लोगों को क्या पता अंदर से कितने अकेले हैं हम !!
मोहब्बतों का ज़िक्र
मोहब्बतों का ज़िक्र करते हैं कमजर्फ़ ही अक्सर, जिनकी इबादतें हैं वो ख़ामोश रहा करते हैं…
तेरी हसरतें भी
तेरी हसरतें भी आ बसीं आखिर, मेरी ख्वाहिशों की यतीम कहानी में |
सामने होते हुए भी
सामने होते हुए भी तुझसे दूर रहना.. बेबसी की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी…
एक पुरानी तस्वीर
एक पुरानी तस्वीर जिसमे तुमने बिंदी लगाई है…. मै अक्सर उसे रात में चाँद समझ के देख लेता हूँ…