महसूस जब हुआ कि सारा शहर, मुझसे जलने लगा है, तब समझ आ गया कि अपना नाम भी, चलने लगा है |
Tag: शर्म शायरी
वो लोग भी चलते है
वो लोग भी चलते है आजकल तेवर बदलकर … जिन्हे हमने ही सिखाया था चलना संभल कर…!
वक़्त की रफ़्तार रुक गई
वक़्त की रफ़्तार रुक गई होती; शर्म से आँखे झुक गई होती; अगर दर्द जानती शमा परवाने का; तो जलने से पहले बुझ गई होती।
लोगों की नजरो मे
लोगों की नजरो मे हमारी कोई कीमत ना हो, लेकिन कोई तो होगा जो, हमारा हाथ पकड़ कर खुद पर नाज़ करेगा..
मुस्कुराते रहोगे तो
मुस्कुराते रहोगे तो दुनिया आपके क़दमों में होगी; वरना आंसुओं को तो तो आँखें भी जगह नहीं देती।
लोग कहते हैं
लोग कहते हैं कि वक़्त किसी का ग़ुलाम नहीं होता, फिर तेरी मुस्कराहट पे वक़्त क्यूँ थम सा जाता है.!!!
भूल जाना मुझे पर
भूल जाना मुझे पर ये याद रखना, रूह भी तेरी रोयेगी जब भी मेरा नाम आयेगा!
हर रोज के मिलने से
हर रोज के मिलने से तक़ल्लुफ़ कैसा ?? चाँद सौ बार भी निकले तो नया लगता है|
तुम मेरे हाथ की
तुम मेरे हाथ की वो लकीर हो जो मेरे नसीब में नही|
खींच लेती है
खींच लेती है मुझे उसकी मोहब्बत; वरना मै बहुत बार मिला हूँ आखरी बार उससे