उम्मीदों से बंधा एक जिद्दी परिंदा है इंसान, जो घायल भी उम्मीदों से है और जिन्दा भी उम्मीदों पर है…
Tag: व्यंग्य
अपने लफ़्ज़ों में
ताकत अपने लफ़्ज़ों में डालों आवाज़ में नहीं.. क्यूँकि फसल बारिश से उगती है बाढ़ से नहीं..
कहानी जब भी
कहानी जब भी लिखूंगा अपनी उजड़ी हुई ज़िन्दगी की सबसे मजबूत किरदार में तेरा ही ज़िक्र होगा..!!
इकट्ठा कर लिए
इकट्ठा कर लिए हथियार जितने लड़ने वालों ने….!! इकट्ठे करते इतने फूल तो दुनिया महक जाती…..!!
नाराज़गी बहुत है
नाराज़गी बहुत है हम दोनों के दरमियान…!!! वो गलत कहता है कि कोई रिश्ता नहीं रहा…!!!
आँखों से पीते है
वो जो आँखों से पीते है वही बहकते है.. वरना इतना नशा शराब से कहा होता है.
कभी टूटा नही
कभी टूटा नही मेरे दिल से तेरी याद का रिश्ता… गुफ़्तुगू जिस से भी हो ख़याल तेरा ही रहता है..
सख़्त हाथों से
सख़्त हाथों से भी…. छूट जाती हैं कभी उंगलियाँ…. रिश्ते ज़ोर से नहीं…. तमीज़ से थामे जाते हैं….
नजाकत तो देखिये
नजाकत तो देखिये साहेब..चांद सा जब कहा उनको.. तो कहने लगी..चांद कहिये ना ये चांद सा क्या है..
काफी दिनों से कोई
काफी दिनों से कोई नया जख्म नहीं मिला; पता तो करो.. “अपने” हैं कहां ????