गये दिनो का सुराग

गये दिनो का सुराग लेकर,किधर से आया किधर गया वो… अजीब मानुस गज़लसरा था,मुझे तो हैरान कर गया वो…

न जाने उँगली छुड़ाकर

न जाने उँगली छुड़ाकर निकल गया है किधर, बहुत कहा था ज़माने से साथ साथ चले ।

कभी फुर्सत मिले तो

कभी फुर्सत मिले तो, अपनी वो कलम भेजवा देना… जिससे आग,और पानी दोनों निकलते हैं… कुछ आँख के आंसू,कुछ लहू के रंग टपकते हैं… देखना था आखिर पन्ने जलते और भिग़ते क्यों नही…”

न रूठना हमसे

न रूठना हमसे हम मर जायेंगे! दिल की दुनिया तबाह कर जायेंगे! प्यार किया है हमने कोई मजाक नहीं! दिल की धड़कन तेरे नाम कर जायेंगे!

दिलों में रहता हूँ

दिलों में रहता हूँ धड़कने थमा देता हूँ मैं इश्क़ हूँ वजूद की धज्जियां उड़ा देता हूँ|

मतलब निकल जाने पर

मतलब निकल जाने पर पलट के देखा भी नहीं, रिश्ता उनकी नज़र में कल का अखबार हो गया !!

आँखों की बात है..

आँखों की बात है.. आँखों को ही कहने दो… कुछ लफ़्ज़ …लबों पर .. मैले हो जाते हैं!

पूछ रही है

पूछ रही है आज मेरी शायरियाँ मुझसे कि, कहा उड़ गये वो परिंदे जो वाह वाह किया करते थे ?

कितने तोहफे देती है

कितने तोहफे देती है ये मोहब्बत भी यार, दुःख अलग रुस्वाई अलग, जुदाई अलग तन्हाई अलग…

तेरा हुस्न बयां करना

तेरा हुस्न बयां करना मकसद नहीँ था मेरा, ज़िद कागजों ने की थी और कलम चल पड़ी.

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