इन्सान की चाहत है कि उड़ने को पर मिले, और परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले
Tag: व्यंग्य शायरी
एक नया ही रंग
जब जब सच बोलके देखा मुह पे इंसान के, हर वक़्त एक नया ही रंग सामने आया ।
कोई कम्बखत उछाल न दे
कोई कम्बखत उछाल न दे हवा में…. अपने गालों से लग जाने दे, एक मुठ्ठी गुलाल ही तो हूँ
जरा मुस्कुरा के देखो
जरा मुस्कुरा के देखो, दुनिया हँसती नजर आएगी!
सज़दे कीजिये या माँगिये
सज़दे कीजिये या माँगिये दुआयें, जो आपका है ही नही वो आपका होगा भी नही…!!
ताल्लुकात बढ़ाने हैं
ताल्लुकात बढ़ाने हैं तो कुछ आदतें बुरी सीख लो.. ऐब न हों.. तो लोग महफ़िलों में नहीं बुलाते
चेहरे को आज तक
चेहरे को आज तक भी तेरा इंतज़ार है.! हमने गुलाल और को मलने नहीं दिया..!!
ये जानते भी तुम हो
क्यों तुले हो जान लेने को, जबकि जान भी तुम हो, और ये जानते भी तुम हो….
भूलना होता तो भुला देते
तुमको भूलना होता तो भुला देते …… तुम मुहब्बती इश्क हो मतलबी इश्क नही …..!!!
अपनी तन्हाई की फिक्र
अपनी तन्हाई की फिक्र करूँ या, तेरी उदासी की….!मेरे बिना तेरा भी तो दिल, ना लग रहा होगा…..!!