नज़्म तेरे नाम की

लिख दूँ…कि रहने दूँ… नज़्म तेरे नाम की…?

उसकी चाहत में

उसकी चाहत में हम यूं बंधे हैं कि वो साथ भी नहीं और हम आजाद भी नहीं ।

कभी मिल सको तो

कभी मिल सको तो इन पंछियो की तरह बेवजह मिलना ए दोस्त वजह से मिलने वाले तो न जाने हर रोज़ कितने मिलते है !!

खो देने से डरते है!

किसको, पाने की तलब है यहां; हम तो बस, तुझे खो देने से डरते है!

तुम करो कोशिशें

तुम करो कोशिशें मुझसे नफरत करने की मेरी तो हर एक सांस से तेरे लिए दुआ ही निकलेगी…!!

प्यार का रिश्ता भी

प्यार का रिश्ता भी कितना अजीब होता है। मिल जाये तो बातें लंबी और बिछड़ जायें तो यादें लंबी।

हमारी नियत का पता

हमारी नियत का पता तुम क्या लगाओगे गालिब…. हम तो नर्सरी में थे तब भी मैडम अपना पल्लू सही रखती थी….

तू खुदा नहीं

तेरा ज़िक्र..तेरी फिक्र ..तेरा एहसास…तेरा ख्याल..!!! तू खुदा नहीं ….फिर हर जगह मौज़ूद क्यूँ है…!!

वो शहंशाह है

वो शहंशाह है, मगर फकीरी मिजाज़ रखता है! काशा हाथ में लेकर, ठोकर पे ताज रखता है! उर्स-ए-गरीब नवाज़ मुबारक हो!

शक है मेरी मोहब्बत पे

अगर शक है मेरी मोहब्बत पे तो दो चार गवाह बुला लो, हम आज, अभी, सबके सामने, ये जिन्दगी तेरे नाम करते है !!

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