अर्थ लापता हैं

अर्थ लापता हैं या फिर शायद लफ्ज खो गए हैं…! रह जाती है मेरी हर बात क्यूँ इरशाद होते होते….!!

सजदा कहूँ या कहूँ

सजदा कहूँ या कहूँ इसे मोहब्बत तेरे नाम में आये अक्षर भी हम मुस्कुरा कर लिखा करते हैं

किसी रोज़ शाम के

किसी रोज़ शाम के वक़्त… सूरज के आराम के वक़्त… मिल जाये साथ तेरा… हाथ में लेके हाथ तेरा…

काश तुम भी

काश तुम भी हो जाओ तुम्हारी यादों की तरह, ना वक़्त देखो, ना बहाना, बस चले आओ…

मरकर भी तुझको

मरकर भी तुझको देखते रहने के शौक में, आखें भी हम किसी को अमानत में दे जायेंगे….

ले चल कही

ले चल कही दूर मुझे तेरे सिवा जहां कोई ना हो, बाँहों में सुला लेना मुझको फिर कोई सवेरा ना हो…!!!

आ भी जाओ मेरी

आ भी जाओ मेरी आँखों के रूबरू अब तुम, कितना ख्वावों में तुझे और तलाशा जाए …..!!

मयख़ाने से बढ़कर

मयख़ाने से बढ़कर कोई ज़मीन नहीं। यहाँ सिर्फ़ क़दम लड़खड़ाते हैं, ज़मीर नही।

बदलेंगे नहीं ज़ज्बात

बदलेंगे नहीं ज़ज्बात मेरे तारीखों की तरह, बेपनाह इश्क करने की ख्वाहिश उम्र भर रहेगी

उम्मीदों की तरह

मिट चले मेरी उम्मीदों की तरह हर्फ़ मगर, आज तक तेरे खतों से तेरी खुश्बु ना गई।

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