आशियाने बनाए भी

आशियाने बनाए भी तो कहाँ बनाए जनाब…. ज़मीने महँगी होती जा रही है और दिल में जगह लोग देते नहीं है|

क्या क़यामत है

क्या क़यामत है के कू- ऐ-यार से हम तो निकले और आराम रह गया।

लाजवाब कर दिया

लाजवाब कर दिया करते हैं वो मुझे अक्सर.. जब तैयार होकर कहते हैं; कि कुछ कहो अब मेरी तारीफ़ में !

हज़ार दुख मुझे देना

हज़ार दुख मुझे देना, मगर ख़्याल रहे मेरे ख़ुदा ! मेरा हौंसला बहाल रहे ..।

जिस दम तेरे

जिस दम तेरे कूचे से हम आन निकलते हैं, हर गाम पे दहशत से बे-जान निकलते हैं…

तेरे उतारे हुए

तेरे उतारे हुए दिन पहनके अब भी मैं, तेरी महक में कई रोज़ काट देता हूँ !!

हाथ गर खाली हो

हाथ गर खाली हो, तो ये ध्यान रखना … घर जो लौटो, तो होठों पर मुस्कान रखना ..

रात भर भटका है

रात भर भटका है मन मोहब्बत के पुराने पते पे । चाँद कब सूरज में बदल गया पता नहीं चला ।।

मुझे मजबूर करती हैं

मुझे मजबूर करती हैं यादें तेरी वरना… शायरी करना अब मुझे अच्छा नहीं लगता।

उसको मालूम कहाँ

उसको मालूम कहाँ होगा, क्या ख़बर होगी, वो मेरे दिल के टूटने से बेख़बर होगी, वक़्त बीतेगा तो ये घाव भर भी जाएँगे, पर ये थोड़ी सी तो तकलीफ़ उम्र भर होगी…

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