बडी खामोशी से

बडी खामोशी से भेजा था गुलाब उसको… पर खुशबू ने शहर भर में तमाशा कर दिया

गुमान न कर

इतना भी गुमान न कर आपनी जीत पर ” ऐ बेखबर ” शहर में तेरे जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के हैं।….।

मेरी हिम्मत को

मेरी हिम्मत को परखने की गुस्ताखी न करना, पहले भी कई तूफानों का रुख मोड़ चुका हु

उचाईओ पर चढ़ कर

सफलता की उचाईओ पर चढ़ कर, अहंकार कभी भी मत करना।। क्योंकि ढलान हमेशा, ऊपर से ही शुरू होता है।।।

डर मुझे भी लगा

डर मुझे भी लगा फांसला देख कर, पर मैं बढ़ता गया रास्ता देख कर, खुद ब खुद मेरे नज़दीक आती गई मेरी मंज़िल मेरा हौंसला देख कर.

जिसमें मतभेद के किले ढह जाएं

क्या ऐसा भूकंप नहीं आ सकता, जिसमें अहम टूट जाए, जिसमें मतभेद के किले ढह जाएं, जिसमें घमंड चूर चूर हो जाए, जिसमें गुस्से के पहाड़ पिघल जाए, जिसमे नफरत हमेशा के लिए दफ़न हो जाये, यदि ऐसा भूकंप आए तो …. दिल से स्वागत है

इतना ग़ुरूर है

ये जो ” इनको ” इतना ग़ुरूर है… सब मेरी ” तारीफों ” का क़ुसूर है…..

मोहब्बत से तौबा

आज फिर की थी, मैने मोहब्बत से तौबा… आज फिर तेरी तस्वीर देखकर नीयत बदल गयी….

महफिल भी सजी है सनम भी..

महफिल भी सजी है सनम भी… हम कन्फ्युज हैं… इश्क करें या शायरी।

निकाल के जिस्म से

निकाल के जिस्म से जो अपनी जान देता है… बङा ही मजबूत है वो पिता जो कन्या दान देता है !!

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