चांदनी के भरोसें

रातों को चांदनी के भरोसें ना छोड़ना, सूरज ने जुगनुओं को ख़बरदार कर दिया… रुक रुक के लोग देख रहे है मेरी तरफ, तुमने ज़रा सी बात को अखबार कर दिया…

टूटे हुऐ होते हैं

शगुफ़्ता लोग भी टूटे हुऐ होते हैं अंदर से, .. बहुत रोते हैं वो लोग जिन्हें लतीफ़े याद रहते हैं ..

ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं

मौत का भी इलाज हो शायद ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं

महसूस जरूर होते हैं

बदलते लोग, बदलते रिश्ते और बदलता मौसम चाहे दिखाई ना दे, मगर महसूस जरूर होते हैं

अब तो कोयले भी

अब तो कोयले भी काले नही लगते जाना है अंदर से इंसानो को हमने!

कहने को मैं

कहने को मैं अकेला हूं,पर हम चार है, एक मैं, मेरी परछाई, मेरी तन्हाई और उसका एहसास

क्या ऐसा नहीँ

क्या ऐसा नहीँ हो सकता की हम प्यार मांगे, और तुम गले लगा के कहो… और कुछ….??

मत इन्हें उछाल

लफ़्ज़ “आईने” हैं मत इन्हें उछाल के चल, “अदब” की “राह” मिली है तो “देखभाल” के चल मिली है “ज़िन्दगी” तुझे इसी ही “मकसद” से, “सँभाल” “खुद” को भी और “औरों” को “सँभाल” के चल “

गज़ल को पढ़कर

पहली बार किसी गज़ल को पढ़कर आंसू आ गए । , शख्सियत, ए ‘लख्ते-जिगर, कहला न सका । जन्नत,, के धनी “पैर,, कभी सहला न सका । . दुध, पिलाया उसने छाती से निचोड़कर, मैं ‘निकम्मा, कभी 1 ग्लास पानी पिला न सका । . बुढापे का “सहारा,, हूँ ‘अहसास’ दिला न सका पेट पर… Continue reading गज़ल को पढ़कर

ज़िन्दगी बदलने के लिए

ज़िन्दगी बदलने के लिए लड़ना पड़ता है और आसान करने के लिए समझना पड़ता है!

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