है हमसफर मेरा तू..

है हमसफर मेरा तू.. अब…मंझिल-ऐ-जुस्तजू क्या…?? खुद ही कायनात हूँ… अब….अरमान-ऐ-अंजुमन क्या…

बहुत दिन हुए तुमने

बहुत दिन हुए तुमने, बदली नहीं तस्वीर अपनी! मैंने तो सुना था, चाँद रोज़ बदलता हैं चेहरा अपना!!

क्या ऐसा नही हो सकता …

क्या ऐसा नही हो सकता ….. हम प्यार मांगे, और तुम गले लगा कर कहो…. “और कुछ”

रात को अक्सर

रात को अक्सर ठीक से नींद ही नहीं आती, घर की किश्तें कम्बखत चिल्लातीं बहुत हैं ।

मेरी आँखों में

मेरी आँखों में आँसू की तरह एक रात आ जाओ, तकल्लुफ से, बनावट से, अदा से…चोट लगती है।

गुज़रे इश्क़ की

गुज़रे इश्क़ की गलियों से और समझदार हो गए, कुछ ग़ालिब बने यहाँ कुछ गुलज़ार हो गए।

शाम महके तेरे

शाम महके तेरे तसव्वुर से, शाम के बाद फिर सहर महके..

ये ना समझना कि

ये ना समझना कि खुशियो के ही तलबगार है हम.. तुम अगर अश्क भी बेचो तो उसके भी खरीदार है हम..

हमसे मोहब्बत का दिखावा

हमसे मोहब्बत का दिखावा न किया कर… हमे मालुम है तेरे वफा की डिगरी फर्जी है

शौक़ कहता है

शौक़ कहता है हर जिस्म को सजदा कीजिए, आँख कहती है तूने अभी देखा क्या है?

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