बंदगी हमने छोड़ दी

बंदगी हमने छोड़ दी फ़राज़ क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ..

इस से पहले कि

इस से पहले कि बेवफ़ा हो जाएँ क्यूँ न ए दोस्त हम जुदा हो जाएँ तू भी हीरे से बन गया पत्थर हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ

मैं दाने डालता हूँ

मैं दाने डालता हूँ ख्यालों के ये लफ्ज़ कबूतरों से चले आतें हैं|

बहुत करीब से

बहुत करीब से अंजान बन केगुज़री है…! वो जो बहुत दूर से पहचान लिया करती थी….!!

हमे अच्छा नही लगता

हमे अच्छा नही लगता……… कि तुम्हे कोई अच्छा लगे|

इस हुनर से

इस हुनर से बच पाओ तो हुनर है, बडा आसान है शायरोँ मेँ शायर हो जाना…

मेरी हर बात

मेरी हर बात उने कड़वी लगती है अब .. जो कभी हमसे बात करे बिना सोती नही थी ..

बदन की क़ैद से

बदन की क़ैद से बाहर, ठिकाना चाहता है; अजीब दिल है, कहीं और जाना चाहता है!

चराग़ ही ने

चराग़ ही ने उजालों की परवरिश की है चराग़ ही से उजाले सुबूत मांगते हैं हम अहले दिल से हमारी वतनपरस्ती का वतन को बेचने वाले सुबूत मांगते हैं…

जो देखता हूँ

जो देखता हूँ वो बोलने का आदि हूँ मैं इस शहर का सबसे बड़ा फसादी हूँ..

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