तू छोड़ रहा है तो

तू छोड़ रहा है तो इसमें तेरी ख़ता क्या हर शख़्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता !!

ज़िन्दगी तरसती है

कब्रोँ पर यहाँ ताजमहल है…. और एक टूटी छत को ज़िन्दगी तरसती है…….

पूछता हूँ सब से

पूछता हूँ सब से कोई बतलाता नहीं बेबसी की मौत मरते हैं सुख़न-वर किस लिए

इन जज़्बातों पे

इन जज़्बातों पे लम्हो से सबक क्यूँ नही लेते… पता भी नही चलता उम्र दबे पाँव जाती है…

तुम रख ही ना सकीं

तुम रख ही ना सकीं मेरा तोफहा सम्भालकर मैंने दी थी तुम्हे,जिस्म से रूह निकालकर

वो हैं के वफ़ाओं में

वो हैं के वफ़ाओं में खता ढूँढ रहे हैं, हम हैं के खताओं में वफ़ा ढूँढ रहे हैं।

बहुत ढूंढने पर

बहुत ढूंढने पर भी अब शब्द नही मिलते अक्सर…. अहसासों को शायद पनाह क़लम की अब गंवारा नही…

कमाल हासिल है

हमको कमाल हासिल है ग़म से खुशियाँ निचोड़ लेते हैं|

परिंदे उनकी छत पर

परिंदे उनकी छत पर बैठे हैं बिन दाने के बिन पानी के हमने तो बड़े चर्चे सुने थे उनकी मेहरबानी के….

जब हम लिखेंगे

जब हम लिखेंगे दास्तान-ए-जिदंगी तो, सबसे अहम किरदार तुम्हारा ही होगा..

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