किसे खोज रहे तुम

किसे खोज रहे तुम इस गुमनाम सी रुह में. वो लफ़्जो में जीने वाला अब खामोशी में रहता है|

उसे छत पर

उसे छत पर खड़े देखा था मैं ने कि जिस के घर का दरवाज़ा नहीं है|

अब क्यों बेठे हो

अब क्यों बेठे हो मेरी कब्र बेवजह कह रहा था चले जाऊंगा तब एतबार न आया|

आज फिर शाख़ से

आज फिर शाख़ से गिरे पत्ते और मिट्टी में मिल गए पत्ते|

छा जाती है

छा जाती है खामोशी अगर गुनाह अपने हों..!! बात दूसरे की हो तो शोर बहुत होता है….!!

ये ज़िंदगी भी

ये ज़िंदगी भी कोई ज़िंदगी है हम-नफ़सो सितारा बन के जले बुझ गए शरर की तरह…

अच्छा हुआ कि

अच्छा हुआ कि तूने हमें तोड़ कर रख दिया, घमण्ड भी तो बहुत था हमें तेरे होने का …..

तुझसे किसने कहा

तुझसे किसने कहा कि यह मुमकिन है? कि मैं रहूँ और मुझ में तू ना रहे?

ये सोचना ग़लत है

ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं, मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बे-ख़बर नहीं।

यहाँ लोग हैं लुटेरे

ऐ दिल चल छोड अब ये पहरे, ये दुनिया है झूठी यहाँ लोग हैं लुटेरे।।

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