दरख़्त ऐ नीम हूँ

दरख़्त ऐ नीम हूँ, मेरे नाम से घबराहट तो होगी, छांव ठंडी ही दूँगा, बेशक पत्तों में कड़वाहट तो होगी…

कर्म भूमि पर

कर्म भूमि पर फल के किये श्रम सबको करना पड़ता है.. रब सिर्फ लकीरें देता है, रंग हमें खुद भरना पड़ता है !!

बहक जाने दे

बहक जाने दे, मुझे मुल्क की मोहब्बत में , यह वो नशा है, जो मेरे सिर से कभी उतरता नहीं …

मैं शिकायत क्यों करूँ

मैं शिकायत क्यों करूँ, ये तो क़िस्मत की बात है..!! तेरी सोच में भी मैं नहीं, मुझे लफ्ज़ लफ्ज़ तू याद हैं….

उनकी नजाकत तो देखिये

उनकी नजाकत तो देखिये साहब…. “चाँद सा” जब कहा तो कहने लगे” चाँद कहिये ना ” ये ” चाँद सा ” क्या है…

मेरी आवारगी में

मेरी आवारगी में कुछ क़सूर अब तुम्हारा भी है, जब तुम्हारी याद आती है तो घर अच्छा नहीं लगता।

आशिक था जो

आशिक था जो मेरे अन्दर वो कई साल पहले मर गया…!अब तो एक शायर है, जो बहकी बहकी बाते करता है..!!

पलकों की हद

पलकों की हद तोड़ के दामन पे आ गिरा,एक आंसू मेरे सबर की तौहीन कर गया…..

है हमसफर मेरा तू..

है हमसफर मेरा तू.. अब… मंझिल-ऐ-जुस्तजू क्या… खुद ही कायनात हूँ… अब…. अरमान-ऐ-अंजुमन क्या…???

दर्द छुपाना भी

दर्द छुपाना भी एक हुनर है, वरना नमक तो हर मुठी में है..!!

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