उन घरों में

उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं|

तू जिंदगी को

तू जिंदगी को बस जी ले, उसे समझने की कोशिश न कर.. मन में चल रहे युद्ध को विराम दे, खामख्वाह खुद से लड़ने की कोशिश न कर.. कुछ बाते कुदरत पर छोड़ दे, सब कुछ खुद सुलझाने की कोशिश न कर.. जो मिल गया उसी में खुश रह, जो सकून छीन ले वो पाने… Continue reading तू जिंदगी को

अभी लिखी है

अभी लिखी है गज़ल तो अभी दीजिये दाद़ वो कैसी तारीफ जो मिले मौत के बाद..

जागा हुआ ज़मीर

जागा हुआ ज़मीर वो आईना है सोने से पहले रोज़ जिसे देखता हूँ मैं|

अपना मुक़द्दर ग़म से

अपना मुक़द्दर ग़म से बेग़ाना अगर होता तो फिर अपने-पराए हमसे पहचाने कहाँ जाते|

मैं अपनी ज़ात में

मैं अपनी ज़ात में नीलाम हो रहा हूँ ग़म-ए-हयात से कह दो ख़रीद लाये मुझे|

लम्हों मे खता की

लम्हों मे खता की है सदियों की सज़ा पाई|

ये भी तो सज़ा है

ये भी तो सज़ा है कि गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हूँ क्यूँ लोग मोहब्बत की सज़ा ढूँढ रहे हैं|

है ये बस्ती

है ये बस्ती तिरे भीगे हुए कपड़ों की तरह तेरे इस्नान-सा लगता है ये बरसात का रंग

हाथ मिलते ही

हाथ मिलते ही उतर आया मेरे हाथों में कितना कच्चा है मिरे दोस्त तिरे हाथ का रंग |

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