मंज़ूर नहीं किसी को

मंज़ूर नहीं किसी को ख़ाक में मिलना, आंसू भी लरज़ता हुआ आँख से गिरता है…..

लोग कहते हैं

लोग कहते हैं कि समझो तो खामोशियां भी बोलती हैं, मैं अरसे से खामोश हूं और वो बरसों से बेखबर….

मैं मुसाफ़िर हूँ

मैं मुसाफ़िर हूँ ख़तायें भी हुई होंगी मुझसे, तुम तराज़ू में मग़र मेरे पाँव के छाले रखना..

वो जब अपने हाथो की

वो जब अपने हाथो की लकीरों में मेरा नाम ढूंढ कर थक गये, सर झुकाकर बोले, लकीरें झूठ बोलती है तुम सिर्फ मेरे हो..

गलती उनकी नहीं

गलती उनकी नहीं कसूरवार मेरी गरीबी थी दोस्तो हम अपनी औकात भूलकर बड़े लोगों से दिल लगा बैठे !!

चिँगारियोँ को हवा दे

चिँगारियोँ को हवा दे कर हम दामन नहीँ जलाते, बुलंद इरादे हमारे पूरे शहर मेँ आग लगाते हैँ..

मैं आदर्शों पर

मैं आदर्शों पर चलने की बातें करता हूँ ! मेरा अक्सर लोगों से झगड़ा हो जाता है !!

चलो तुम रास्ते

चलो तुम रास्ते ख़ोजो बिछड़ने के, हम माहौल पैदा करते है मिलने के !!

सूरज रोज़ अब भी

सूरज रोज़ अब भी बेफ़िज़ूल ही निकलता है …. तुम गए हो जब से , उजाला नहीं हुआ …

शायरी उसी के

शायरी उसी के लबों पर सजती है साहिब.. जिसकी आँखों में इश्क़ रोता हो..

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