उस खुशी का

उस खुशी का हिसाब कैसे हो… तुम जो पूछ लो “जनाब कैसे हो””

जिंदगी उलझी पड़ी है

मैं भूला नहीं हूँ किसी को… मेरे बहुत अच्छे दोस्त है ज़माने में ……… बस थोड़ी जिंदगी उलझी पड़ी है ….. 2 वक़्त की रोटी ढूंढने में। ….

जन्नत का पता नहीं

लोग कहते हैं ज़मीं पर किसी को खुदा नहीं मिलता,शायद उन लोगों को दोस्त कोई तुम-सा नहीं मिलता……!!किस्मतवालों को ही मिलती है पनाह किसी के दिल में,यूं हर शख़्स को तो जन्नत का पता नहीं मिलता……….!!अपने सायें से भी ज़यादा यकीं है मुझे तुम पर,अंधेरों में तुम तो मिल जाते हो, साया नहीं मिलता……..!!इस बेवफ़ा… Continue reading जन्नत का पता नहीं

जरा सँभलकर चलना

मिज़ाज बदलते रहते हैं हर पल लोगों के यहाँ ये मिज़ाजों का शहर है जरा सँभलकर चलना

ताल्लुक हो तो

ताल्लुक हो तो रूह से रूह का हो … दिल तो अकसर एक दूसरे से भर जाया करते है

ज़िन्दिगी बन जाती हैं.

दो परिंदे सोंच समझ कर जुदा हो गयें और जुदा होकर मर गयें जानते हो क्यों? क्योंकि उन्हे नहीं मालूम था कि नज़दीकियाँ पहले आदत फिर ज़रूरत और फिर ज़िन्दिगी बन जाती हैं.।

पहचानती तो है…

हमेँ देख कर उसने,मुह मोड लिया…… ,,,,, तसल्ली सी हो गयी,,कि चलो,पहचानती तो है…..

रहना ज़िंदगी से

“ये इक दिन मौत से सौदा करेगी, जरा…होशियार रहना ज़िंदगी से”..

डोर से बाँधा जाए

जरुरी तो नहीँ हर रिश्ते को नाम की डोर से बाँधा जाए, बाँधे गए रिश्ते अक्सर टूट जाते हैँ..!!!

छोटे से जख्म

वक़्त नूर को बेनूर बना देता है! छोटे से जख्म को नासूर बना देता है! कौन चाहता है अपनों से दूर रहना पर वक़्त सबको मजबूर बना देता है!

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