मुझे तूं कुछ यूँ चाहिए…… जैसे रूह को शुकुन चाहिए.
Category: व्यंग्य शायरी
बदनसीब मैं हूँ
बदनसीब मैं हूँ या तू हैं, ये तो वक़्त ही बतायेगा…बस इतना कहता हूँ,अब कभी लौट कर मत आना…
मौसम की पहली बारिश
मौसम की पहली बारिश का शौक तुम्हें होगा. हम तो रोज किसी की यादो मे भीगें रहते है..!
चाँदी उगने लगी हैं
चाँदी उगने लगी हैं बालों में उम्र तुम पर हसीन लगती है|
ये मुहब्बत की
ये मुहब्बत की तोहीन है… चाँद देखूँ तुम्हें देखकर…
चूम लेता है
चूम लेता है झूठे तमगे जीत के भी हार जाता है मौत तो कई दफा होती है जनाजा मगर एक बार जाता है|
अक्सर वही रिश्ते टूट जाते हैं…
अक्सर वही रिश्ते टूट जाते हैं…. जिसे सम्भालनें की अकेले कोशिश की जाती है…
टपकती है निगाहों से
टपकती है निगाहों से, बरसती है अदाओं से, कौन कहता है मोहब्बत पहचानी नहीं जाती|
क़ैद ख़ानें हैं
क़ैद ख़ानें हैं , बिन सलाख़ों के…कुछ यूँ चर्चें हैं , तुम्हारी आँखों के…
तुझे अपनी खूबसूरती पर
तुझे अपनी खूबसूरती पर इतना गुरूर क्यों है . लगता है तेरा आधार कार्ड अभी तक बना नही