एक एक कतरे से आग सी निकलती है हुस्न जब नहाता है भीगते महीनों में !! . नर्म नर्म कलियों का रस निचोड़ लेती हैं पत्थरों के दिल होंगे इन तितलियों के सीनों में।
Category: व्यंग्य शायरी
थोड़ा बचा हूँ
थोड़ा बचा हूँ, बाकि हिसाब हो चुका है.. बहुत कुछ है, जो मुझमें राख़ हो चुका है..
वो जग़ह मुझे
वो जग़ह मुझे अब भी अज़ीज़ है.. जहाँ मुझे उजाड़ कर बस गए हैं लोग कई..
सोते हुए भी
सोते हुए भी तेरा ज़िक्र करते हैँ……..! मेरे होठ भी तेरी फिक्र करते हैँ……
आँख का आंसू
आँख का आंसू ना हमसे बच सका , … घर के सामान की हिफाजत क्या करें….
ज़िन्दगी तस्वीर भी है
ज़िन्दगी तस्वीर भी है और तकदीर भी! फर्क तो रंगों का है! मनचाहे रंगों से बने तो तस्वीर; और अनजाने रंगों से बने तो तकदीर!!
या तो हमें मुकम्मल
या तो हमें मुकम्मल, चालाकियां सिखाई जाएं; नहीं तो मासूमों की, अलग बस्तियां बसाई जाएं!
कुछ तो हम ख़ुद भी
कुछ तो हम ख़ुद भी नहीं चाहते शौहरत अपनी,और कुछ लोग भी ऐसा नहीं होने देते…!!
मुंह खोल कर
मुंह खोल कर तो हंस देता हूँ मैं आज भी साहब, दिल खोल कर हंसे मुझे ज़माने गुज़र गए
कभी जी भर के
कभी जी भर के बरसना… कभी बूंद बूंद के लिए तरसना… ऐ बारिश तेरी आदतें मेरे यार जैसी है…!!