मैंने यादें उठाकर देखी हैं….. इक वक्त ऐसा भी था जब तुम मेरे थे|
Category: गुस्ताखियां शायरी
मुस्कुराते पलको पे
मुस्कुराते पलको पे सनम चले आते हैं, आप क्या जानो कहाँ से हमारे गम आते हैं, आज भी उस मोड़ पर खड़े हैं, जहाँ किसी ने कहा था, कि ठहरो हम अभी आते हैं..
जिन्दंगी को समझना
जिन्दंगी को समझना बहुत मुशकिल हैं. कोई सपनों की खातिर “अपनों” से दूर रहता हैं.. और , कोई “अपनों” के खातिर सपनों से दूर …!!
बिगाड़ कर बनाए जा
बिगाड़ कर बनाए जा या सवाँर कर बनाए जा में तेरा चिराग हु जलाए जा या बूझाए जा|
गुफ़्तुगू देर से
गुफ़्तुगू देर से जारी है नतीजे के बग़ैर इक नई बात निकल आती है हर बात के साथ |
उंगलिया डुबी है
उंगलिया डुबी है अपने ही लहू में। शायद ये कांच के टुकड़े उठाने की सजा है।।
यूँ तो शिकायते
यूँ तो शिकायते तुझ से सैंकड़ों हैं मगर तेरी एक मुस्कान ही काफी है सुलह के लिये..
छोड दी हमने
छोड दी हमने हमेशा के लिए उसकी, आरजू करना, जिसे मोहब्बत, की कद्र ना हो उसे दुआओ, मे क्या मांगना…
कुछ इस अंदाज़ से
कुछ इस अंदाज़ से आईना देखते है वो के देखते हुए उन्हें कोई देखता न हो..
दिल चाहता है
दिल चाहता है कि बहुत करीब से देखूँ तुम्हें पर नादान आंखे तेरे करीब आते ही बंद हो जाती हैं|