हजार ख्वाहिशें एक

हजार ख्वाहिशें एक साथ हमने तोलकर देखी उफ्फ़ चाहत उसकी फिर भी सब पे भारी थी

तुम बेशक चले गये

तुम बेशक चले गये हो इश्क का स्कूल छोड़कर, हम आज भी तेरी यादों की क्लास में रोज़ हाजरी देते है|

तुम्हारी बेरूखी ने

तुम्हारी बेरूखी ने लाज रख ली बादाखाने की……! तुम आंखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते…..

दीवार क्या गिरी

दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की, लोगों ने मेरे घर से रास्ते बना लिए

करीब आ जाओ

करीब आ जाओ जीना मुश्किल है तुम्हारे बिना, दिल को तुम से ही नही, तुम्हारी हर अदा से मोहब्बत है…

धरती पर शिद्दत से

आज भी आदत में शामिल है, उसकी गली से होकर घर जाना.

इधर आओ जी भर के

इधर आओ जी भर के हुनर आज़माएँ, तुम तीर आज़माओ, हम ज़िग़र आज़माएँ..

ख़ुद को बिखरते देखते हैं

ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं

ज़िंदगी कम लगे

ज़िंदगी कम लगे ऐसी मोहब्बत चाहिए, मुझे अपने वजूद की पूरी कीमत चाहिए…!

और भी शेर है

और भी शेर है लिखने को तिरंगा तो कम से कम साफ़ रहने दो भाई

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