तेरी मोहब्बत तो जैसे सरकारी नौकरी हो, नौकरी तो खत्म हुयी अब दर्द मिल रहा है पेंशन की तरह!
Category: व्यंग्य शायरी
तकदीरें बदल जाती हैं
तकदीरें बदल जाती हैं जब ज़िंदगी का कोई मकसद हो, वरना ज़िंदगी कट ही जाती है तकदीरों को इल्ज़ाम देते देते!
दुरुस्त कर ही लिया
दुरुस्त कर ही लिया मैंने नज़रिया अपना, कि दर्द न हो तो मोहब्बत मज़ाक लगती है!
सरेआम न सही
सरेआम न सही फिर भी रंजिश सी निभाते है.. किसी के कहने से आते किसी के कहने से चले जाते..
बहुत आसाँ हैं
बहुत आसाँ हैं आदमी का क़त्ल मेरे मुल्क में, सियासी रंजिश का नाम लेकर घर जला डालो…..
कितने गम दिये मैंने
कितने गम दिये मैंने, कितनी खुशी दी तुमने, मार्च का महीना आ गया है आ तू भी हिसाब कर ले…
किस्सा बना दिया
किस्सा बना दिया एक झटके में उसने मुझे, जो कल तक मुझे अपना हिस्सा बताता था !!
भूलना भुलाना दिमाग़ का
भूलना भुलाना दिमाग़ का काम है साहिब…. आप दिल में रहते हो….बेफिक्र हो जाओ….!!
निभाते नही है..
निभाते नही है..लोग आजकल..! वरना. इंसानियत से बड़ा रिश्ता कौन सा है..
एक अरसा गुजर गया
एक अरसा गुजर गया तुम बिन फिर तेरी यादे क्यों नहीं गुजर जाती इस दिल से