मत दिखाओ हमें, तुम ये मुहब्बत का बहीखाता , हिसाब-ए-इश्क़ रखना, हम दीवानों को नहीं आता ….
Category: बेवफा शायरी
कितनी है कातिल ज़िंदगी
कितनी है कातिल ज़िंदगी की ये आरज़ू, मर जाते हैं किसी पे लोग जीने के लिये।
अक्ल बारीक हुई
अक्ल बारीक हुई जाती है, रूह तारीक हुई जाती है।
फासले इस कदर
फासले इस कदर आज है रिश्तों में, जैसे कोई क़र्ज़ चुका रहा हो किश्तों में
एक ही चौखट पे
एक ही चौखट पे सर झुके तो सुकून मिलता है भटक जाते है वो लोग जिनके हजारों खुदा होते है।
हमारे बिन अधूरे तुम
हमारे बिन अधूरे तुम रहोगे, कभी चाहा था किसी ने,तुम ये खुद कहोगे..
हो सके तो
हो सके तो दिलों में रहना सीखो, गुरुर में तो हर कोई रहता है…
सियाही फैल गयी
सियाही फैल गयी पहले, फिर लफ्ज़ गले, और एक एक कर के डूब गए..
शायद कुछ दिन
शायद कुछ दिन और लगेंगे, ज़ख़्मे-दिल के भरने में, जो अक्सर याद आते थे वो कभी-कभी याद आते हैं।
क्या क्या रंग
क्या क्या रंग दिखाती है जिंदगी क्या खूब इक्तेफ़ाक होता है, प्यार में ऊम्र नहीँ होती पर हर ऊम्र में प्यार होता है..!!