ये बात और है

ये बात और है के तक़दीर लिपट के रोई वरना ! बाज़ू तो हमनें तुम्हे देख कर ही फैलाए थे !!

मेरे लफ़्ज़ों को

मेरे लफ़्ज़ों को अब भी नशा है तुम्हारा … निकल कर ज़हन से, कागज़ों पर गिर पड़ते हैं …

कुछ बाते उससे

कुछ बाते उससे छुपायीं थी … और कुछ कागज़ों को बतायीं थी …

मुझे ऐसा मरना है

मुझे ऐसा मरना है जैसे, लिखते लिखते स्याही खत्म हो जाये…

जिसके लिए लिखता हूँ

जिसके लिए लिखता हूँ आज कल…….. .वो कहती हैं अच्छा लिखते हो उनको सुनाऊँगी.

गम बिछड़ने का

गम बिछड़ने का नहीं करते खानाबदोश ,वो तो वीराने बसाने का हुनर जानते हैं…….

खामोशी के दौर से

खामोशी के दौर से गुजर रही है जिंदगी.. और कोई ये भी नही पूछ रहा कि कारण क्या है..

ज़िन्दगी के मायने तो

ज़िन्दगी के मायने तो याद तुमको रह जायेंगे , अपनी कामयाबी में कुछ कमी भी रहने दो….

अब जुदाई के सफ़र को

अब जुदाई के सफ़र को मेंरे आसान करो….. तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो ….

गुजरूँगा तेरी गली से

गुजरूँगा तेरी गली से अब गधे लेकर क्यों कि तेरे नखरों के बोझ मुझसे अब उठाए नहीं जाते….

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