मैं आज़ाद हूँ बस उस लम्हे तक जब तक तुम्हारा ख़्याल न आये….
Category: गरूर शायरी
लौट आया हूँ
लौट आया हूँ मैं फिर ख़ामोशी की क़ैद में … ! .तुम्हें दिल से आवाज़ देने की यही सजा हैं मेरी…
शब्द तो सारे के सारे
शब्द तो सारे के सारे सुरक्षित हैं … बस भावनाओं का वाष्पीकरण हो गया है तुम्हारे खतो से…
माना कि मोहब्बत
माना कि मोहब्बत बेइंतहा है आपसे… पर क्या करें, थोड़ा सा इश्क़ खुद से भी है हमें.. ।।
ये न पूछ
ये न पूछ के शिकायतें कितनी है तुझसे ये बता के तेरा और कोई सितम बाकी तो नहीं …!!!
लाजमी नही है
लाजमी नही है की हर किसी को मौत ही छूकर निकले “” किसी किसी को छूकर जिंदगी भी निकल जाती है ||
एक तज़ुर्बा है
हर एक लकीर एक तज़ुर्बा है जनाब .. .. झुर्रियाँ चेहरों पर यूँ ही आया नहीं करती !!
ये मशवरा है
ये मशवरा है की पत्थर बना के रख दिल को। ये आइना ही रहा तो जरूर टूटेगा।।
मिटटी महबूबा सी
मिटटी महबूबा सी नजर आती है गले लगाता हूँ तो महक जाती है ।।
बहुत आसान है
बहुत आसान है पहचान इसकी…., अगर दुखता नहीं है तो “दिल” नहीं है….।