तू होश मे थी फिर भी मुझे पहचान न पायी, एक हम हैं कि पी कर भी तेरा नाम लेते रहे।
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तुम सो गयी हो
जानता हूँ तुम सो गयी हो, मुझे पढ़ते हुए.. मगर मैं रातभर जागूँगा, तुम्हें लिखते हुए…!
कमाई छोटी या बड़ी
कमाई छोटी या बड़ी हो सकती है… पर रोटी की साइज़ तो सब घर में एक जैसी होती है।
ग़ालिब-ऐ-दिवान
लोग पत्थर उठाए फिरते हैं और हम ग़ालिब-ऐ-दिवान उठाए फिरते है
हिम्मतों का इम्तेहाँ
हौसलों का, हिम्मतों का इम्तेहाँ है ज़िन्दगी जो मज़ा मुश्क़िल में है, वो ख़ाक़ आसानी में है
मेरे अंदाज़ से
सर झुकाने से नमाज़ें अदा नहीं होती… दिल झुकाना पड़ता है इबादत के लिए…! पहले मैं होशियार था, इसलिए दुनिया बदलने चला था, आज मैं समझदार हूँ, इसलिए खुद को बदल रहा हूँ।। बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर… क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है.. मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा, चुपचाप… Continue reading मेरे अंदाज़ से
मुसाफ़िर कल आए थे
दुनिया की इस रीत में सारे हैं मुसाफ़िर कल आए थे-कुछ आज, तो कुछ लोग कल गए
मां की आंखो मे
कल अपने आप को देखा था मां की आंखो मे, यह आईना मुझको बुढा नहीं बताता है..
तक़्दीर की बुलन्दी
तक़्दीर की बुलन्दी भी लोगों को खल गयी निकला ज़रूर दम, मगर अरमाँ निकल गए
दिल में रहा
दिल में रहा न जोश तो दिल-दिल नहीं रहे वो दिल ही क्या जो अक़्ल के हाथों सँभल गए