है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है
Tag: Shayari
छोड़ ये बात
छोड़ ये बात,… मिले जख्म,….. मुझे कहां से, ऐ ज़िन्दगी इतना बता, कितना सफर बाकी है…
हम भी शामिल हैं
हम भी शामिल हैं खेल में लेकिन सिर्फ सिक्का उछालने के लिए.!
सुनते आये है
सुनते आये है की पानी से कट जाते है पत्थर, शायद मेरे आँसुओं की धार ही थोड़ी कम रही होगी..!
हर मर्ज की दवा है
हर मर्ज की दवा है वक्त .. कभी मर्ज खतम, कभी मरीज खतम..।
गिनती तो नहीं याद
गिनती तो नहीं याद, मगर याद है इतना सब ज़ख्म बहारों के ज़माने में लगे हैं…
कागज़ कलम मैं
कागज़ कलम मैं तकिये के पास रखता हूँ, दिन में वक्त नहीं मिलता,मैं तुम्हें नींद में लिखता हूँ..
हम उसके बिन हो गये है
हम उसके बिन हो गये है सुनसान से, जैसे अर्थी उठ गयी हो किसी मकान से !!
तुम रूक के नहीं
तुम रूक के नहीं मिलते हम झुक के नहीं मिलते मालूम ये होता है कुछ तुम भी हो कुछ हम भी|
मैं अपने शहर के
मैं अपने शहर के लोगों से ख़ूब वाकिफ़ हूँ हरेक हाथ का पत्थर मेरी निगाह में है|