लगाकर आग दिल में

लगाकर आग दिल में अब तुम चले हो कहाँ…. अभी तो राख उड़ने दो तमाशा और भी होगा |

तुम मेरे लिए रेत क्यों हुए..

तुम मेरे लिए रेत क्यों हुए…पहाड़ क्यों न हुए ? तुम मेरे लिए पहाड़ क्यों हुए…रेत क्यों न हुए ? रेत…पहाड़…मैं…सब वही सिर्फ… “तुम” बदल गए पहली बार भी और फिर…आखिरी बार भी…

अब हर कोई हमें

अब हर कोई हमें आपका आशिक़ कह के बुलाता है इश्क़ नहीं न सही मुझे मेरा वजूद तो वापिस कीजिए ।

हंस के नज़र झुका लेना !!

ग़ज़ब है उसका हंस के नज़र झुका लेना !! सारी शर्तें मेरी कुबूल हों जैसे !!

तुझे हँस हँस के

तुझे हँस हँस के बिताते हैं हम.. जिन्दगी एहसान है मेरा तुझ पर…!!

बहुत खूबसूरत हो

बहुत खूबसूरत हो तुम बिल्कुल किसी धोखे की तरह !!

मेरी हर आह को

मेरी हर आह को वाह मिली है यहाँ.. कौन कहता है दर्द बिकता नहीं है..

दिल से मांगी जाती है

दुआ तो दिल से मांगी जाती है, जुबां से नहीं, क़बूल तो उसकी भी होती है, जिसकी ज़ुबान नहीं होती|

पूराना क़र्ज़ चुकाने में

पूराना क़र्ज़ चुकाने में ख़र्च कर डाली, तमाम उम्र कमाने में ख़र्च कर डाली। वो डोर जिससे हम आसमान छू सकते थे, पतंग उड़ाने में ख़र्च कर डाली।

गुफ्तगू देर से

गुफ्तगू देर से जारी है किसी नतीजे के बगैर… बस उसके गुस्से से लगता है कि उसे प्यार बहुत है…

Exit mobile version