ज़रा बर्बाद है

किस ने कहा ,किस से कहा ,ये सब कहाँ अब याद है ….दिल ही ज़रा बर्बाद है,बाकी तो सब आबाद है ….

मेरे पास ही था

मेरे पास ही था उनके ज़ख्मों का मरहम… मगर… बड़े शहरों में कहाँ छोटी दुकान दिखाई देती है ।।

सफर में साथ

सफर में साथ चलने की किसी से जिद नहीं करता, मुझे तुम छोड़़कर उस मोड़ पर आगे निकल जाना !!

 मैंने ख़ामोशी को लफ्ज़ दिए

मैंने ख़ामोशी को लफ्ज़ दिए तुमने लफ़्ज़ों को भी खामोश कर दिया

जुदाई हो अगर

जुदाई हो अगर लम्बी तो अपने रूठ जाते हैं…. बहुत ज्यादा परखने से भी रिश्ते टूट जाते हैं…

नींद भी नीलाम हो

नींद भी नीलाम हो जाती है बाज़ार -ए- इश्क में, किसी को भूल कर सो जाना, आसान नहीं होता !

एक नींद है

एक नींद है जो रात भर नहीं आती और एक नसीब है जो न जाने कब से सो रहा..

किसी शहर के

किसी शहर के सगे नहीं हैं ये चहचहाते हुए परिंदे तभी तलक ये करें बसेरा दरख्‍़त जब तक हरा भरा है

मेरी बाहों के

इश्क का तू हरफ।।जिसके चारों तरफ।।मेरी बाहों के घेरे का बने हासिया

शिकायते तो बहुत है

शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी, पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने, वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता”…

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