माना कि तुम

माना कि तुम गुफ़्तगू के फन में माहिर हो वफ़ा के लफ्ज़ पे अटको तो हमें याद कर लेना….

मुझसे मिलने को

मुझसे मिलने को करता था बहाने कितने, अब मेरे बिना गुजारेगा वो जमाने कितने !!

उम्दा सारी आदतें

उम्दा सारी आदतें, फूटे हुए नसीब। कच्चे धागे से हुई, माला बेतरतीब।।

सच का जवाब नही

ज़ायके में थोडा कड़वा है वर्ना सच का जवाब नही|

बिछड़कर फिर मिलेंगे

बिछड़कर फिर मिलेंगे यकीन कितना था… बेशक ख्वाब ही था मगर.. हसीन कितना था…

अलविदा कहते हुए

अलविदा कहते हुए जब मैंने मांगी उससे कोई निशानी वो मुस्कुरा के बोले मेरी जुदाई ही काफ़ी हैं तुझे रुलाने के लिए..!!

तुम आ गए हो

तुम आ गए हो तो अब आइना भी देखेंगे… अभी अभी तो निगाहों में रौशनी हुई है…!!!

हम अपने उसूलों से

हम अपने उसूलों से, डगमगाये तो थे ज़रूर; पर आप भी मुस्करा कर, पलटे तो थे हुज़ूर!

देखा है क़यामत को

देखा है क़यामत को,मैंने जमीं पे नज़रें भी हैं हमीं पे,परदा भी हमीं से|

कुछ कहने के लिए ….

कुछ कहने के लिए ….. बोलने की क्या जरुरत हे !!!!

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