मिले जब चार कंधे

मिले जब चार कंधे तो दिल ने ये कहा मुझसे…जीते जी मिला होता तो…..एक ही काफी था…

दरवाजे पर लिखा था..

दरवाजे पर लिखा था…मुझे बुलाना मत, मैं बहुत दुखी हूँ सच्चा मित्र अंदर जाकर बोला…मुझे पढ़ना नहीं आता है।।

ये ना पूछ कि

ये ना पूछ कि शिकायतें कितनी हैं तुझसे, ऐ जिंदगी, सिर्फ ये बता कि कोई और सितम बाकी तो नहीं?

ख़ाक से बढ़कर

ख़ाक से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती, छोटी मोटी बात पे हिज़रत नहीं होती। पहले दीप जलें तो चर्चे होते थे, अब शहर जलें तो हैरत नहीं होती।

मजबूरी का मजाक

किसी की मजबूरी का मजाक ना बनाओ यारों, ज़िन्दगी कभी मौका देती है तो कभी धोखा भी देती है।

इतना शौक मत रखो

इतना शौक मत रखो इन इश्क की गलियों में जाने का, क़सम से रास्ता जाने का है पर आने का नहीं।

न जाने कब

न जाने कब खर्च हो गये, पता ही न चला, वो लम्हे, जो छुपाकर रखे थे जीने के लिये।

मुद्दत के बाद

मुद्दत के बाद उसने जो आवाज दी मुझे… कदमों की क्या बिसात, साँसें ही थम गयी…!!!

ज़िन्दगी सुन तू यही

ज़िन्दगी सुन तू यही पे रुकना…!! हम हालात बदल के आते है….

लम्हा सा बना दे

लम्हा सा बना दे मुझे.. रहूँ गुज़र के भी साथ तेरे…..!!

Exit mobile version