मिले जब चार कंधे

मिले जब चार कंधे तो दिल ने ये कहा मुझसे…जीते जी मिला होता तो…..एक ही काफी था…

ख़ाक से बढ़कर

ख़ाक से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती, छोटी मोटी बात पे हिज़रत नहीं होती। पहले दीप जलें तो चर्चे होते थे, अब शहर जलें तो हैरत नहीं होती।

ज़िन्दगी सुन तू यही

ज़िन्दगी सुन तू यही पे रुकना…!! हम हालात बदल के आते है….

लम्हा सा बना दे

लम्हा सा बना दे मुझे.. रहूँ गुज़र के भी साथ तेरे…..!!

दौलत की दीवार में

दौलत की दीवार में तब्दील रिश्ते कर दिये, देखते ही देखते भाई मेरा पडोसी हो गया।

बस वो मुस्कुराहट

बस वो मुस्कुराहट ही कहीं खो गई है, बाकी तो मैं बहुत खुश हूँ आजकल…

अब गिला क्या करना ..

अब गिला क्या करना ..उनकी बेरुखी का .. दिल ही तो था भर गया होगा …

और थोड़ा सा

और थोड़ा सा बिखर जाऊँ ..यही ठानी है….!!! ज़िंदगी…!!! मैं ने अभी हार कहाँ मानी है….

दुनिया से बेखबर

दुनिया से बेखबर चल कही दूर निकल जाये

शीशा रहे बगल में

शीशा रहे बगल में, जामे शराब लब पर, साकी यही जाम है, दो दिन की जिंदगानी का…

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