आ थक के कभी

आ थक के कभी और, पास मेरे बैठ तू हमदम . . . तू खुद को मुसाफ़िर, मुझे दीवार समझ ले ।

कीसीने युं ही

कीसीने युंही पुछ लिया की दर्दकी किमत क्या है? हमने हंसते हुए कहा, पता कुछ अपने मुफ्त में दे जाते है।

हमारे बिन अधूरे तुम

हमारे बिन अधूरे तुम रहोगे, कभी चाहा था किसी ने,तुम ये खुद कहोगे..

आँखों की दहलीज़ पे

आँखों की दहलीज़ पे आके सपना बोला आंसू से… घर तो आखिर घर होता है… तुम रह लो या मैं रह लूँ….

कोशिश तो बहुत

कोशिश तो बहुत करता है तू की भूल जाए उसे. मगर मुमकिन कहाँ है कि आग लगे और धुंवा ना हो..

आज तबियत कुछ

आज तबियत कुछ नासाज़ सी लग रही है लगता है किसी की दुआओ का असर हो रहा है|

अकड़ती जा रही हैं

अकड़ती जा रही हैं हर रोज गर्दन की नसें, आज तक नहीं आया हुनर सर झुकाने का ..

कुछ तो है

कुछ तो है जो बदल गया जिन्दगी में मेरी अब आइने में चेहरा मेरा हँसता हुआ नज़र नहीं आता…

क्या क्या रंग

क्या क्या रंग दिखाती है जिंदगी क्या खूब इक्तेफ़ाक होता है, प्यार में ऊम्र नहीँ होती पर हर ऊम्र में प्यार होता है..!!

यू तो अल्फाज नही हैं

यू तो अल्फाज नही हैं आज मेरे पास मेहफिल में सुनाने को, खैर कोई बात नही, जख्मों को ही कुरेद देता हूँ।

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