पत्थर के सनम

शायरी भी एक

शायरी भी एक मीठा जुल्म है,,, करते रहो या फिर पढ़ते रहो…

क़दम उठे भी

क़दम उठे भी नहीं बज़्म-ए-नाज़ की जानिब,,,,, ख़याल अभी से परेशाँ है देखिए क्या हो…..!!

पत्थर न बना दे

पत्थर न बना दे मुझे मौसम की ये सख़्ती,,,, मर जाएँ मेंरे ख़्वाब न ताबीर के डर से….!!.

तन्हा उठा लूँ

तन्हा उठा लूँ मैं भी ज़रा लुत्फ़-ए-गुमरही,,,,, ऐ रहनुमा मुझे मेंरी क़िस्मत पे छोड़ दे….!!

सितमगर जब कोई

सितमगर जब कोई ताज़ा सितम ईजाद करते हैं, तो बहर-ए-इम्तिहाँ पहले हमीं को याद करते हैं….!!

तेरा यक़ीन हूँ

तेरा यक़ीन हूँ मैं कब से इस गुमान में था, मैं ज़िंदगी के बड़े सख़्त इम्तिहान में था…..!!

दिल के सुनसान जज़ीरों की

दिल के सुनसान जज़ीरों की ख़बर लाएगा, दर्द पहलू से जुदा हो के कहाँ जाएगा…..!!

ये जो मेरे दिल की

ये जो मेरे दिल की लगी है… बस यही तो बर्बाद ज़िंदगी है|

क़िस्सा बन सकते थे

ख़्वाब जज़ीरा बन सकते थे, नहीं बने, हम भी क़िस्सा बन सकते थे, नहीं बने….!!

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