सियाही फैल गयी

सियाही फैल गयी पहले, फिर लफ्ज़ गले, और एक एक कर के डूब गए..

ये भी क्या सवाल हुआ

ये भी क्या सवाल हुआ कि इश्क़ कितना चाहिए, .दिल तो बच्चे की तरह है मुझे थोड़ा नहीं सब चाहिए !!

आँखों की दहलीज़ पे

आँखों की दहलीज़ पे आके सपना बोला आंसू से… घर तो आखिर घर होता है… तुम रह लो या मैं रह लूँ….

आँखों की दहलीज़ पे

आँखों की दहलीज़ पे आके सपना बोला आंसू से… घर तो आखिर घर होता है… तुम रह लो या मैं रह लूँ….

कोशिश तो बहुत

कोशिश तो बहुत करता है तू की भूल जाए उसे. मगर मुमकिन कहाँ है कि आग लगे और धुंवा ना हो..

चलो अच्छा हुआ

चलो अच्छा हुआ कि अब धुंध पड़ने लगी ..!! दूर तक तकती थी निगाहें उसको …

आज तबियत कुछ

आज तबियत कुछ नासाज़ सी लग रही है लगता है किसी की दुआओ का असर हो रहा है|

अब अपना मुझको

अब अपना मुझको कौन लगे शब्दों से प्यारा मौन लगे…..

अकड़ती जा रही हैं

अकड़ती जा रही हैं हर रोज गर्दन की नसें, आज तक नहीं आया हुनर सर झुकाने का ..

कुछ तो है

कुछ तो है जो बदल गया जिन्दगी में मेरी अब आइने में चेहरा मेरा हँसता हुआ नज़र नहीं आता…

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