अजीब सी बस्ती में ठिकाना है मेरा जहाँ लोग मिलते कम, झांकते ज़्यादा है…
Tag: शर्म शायरी
कदर हैं आज
फासलें इस कदर हैं आज रिश्तों में, जैसे कोई घर खरीदा हो किश्तों में
वक्त अच्छा था
वक्त अच्छा था तो हमारी गलती मजाक लगती थी वक्त बुरा है तो हमारा मजाक भी गलती लगती है..
रिवाज़ ही बदल गए
सुना था वफा मिला करती हैं मोहब्बत में…. हमारी बारी आई तो रिवाज़ ही बदल गए …
दिल बेजुबान है
दिल बेजुबान है तो क्या, तुम यूँ ही तोड़ते रहोगे..?!
कागज़ की नाव
बस इतनी सी बात समंदर को खल गईं, एक कागज़ की नाव मुझ पर कैसे चल गई!
वक्त जरूर लगा
वक्त जरूर लगा पर मैं सम्भल गया क्योंकि। मैं ठोकरों से गिरा था किसी के नज़रों से नहीं।।
उंगली मेरी वफ़ा
उंगली मेरी वफ़ा पे ना उठाना लोगों, … जिसे शक हो वो एक बार निभा कर देखे ।
Duniya to waise bhi
Dil bada rkhe duniya to waise bhi bahut chhoti hai……
जिस दिन अपने
जिस दिन अपने कमाए हुए पैसों से जीना सीख जायोगे , उस दिन आपके शौक अपने आप कम हो जायेंगे..!!