शाम होते ही चिरागों को बुझा देता हूँ मैं… ये दिल ही काफ़ी है तेरी याद में जल जाने के लिए…
Tag: शर्म शायरी
क्यूँ पूछते हो
क्यूँ पूछते हो सुबह को, मेरी सुर्ख आँखों का सबब… ग़र इतनी ही फिक्र है, तो सुलाने क्यूँ नहीं आते!!
ये जरूरी नहीं कोई
ये जरूरी नहीं कोई ताल्लुक हो तुझ से !! सुकून देता है तेरा दिखते रहना भी !!
परेशान तो तुम्हारी तरह..
परेशान तो तुम्हारी तरह.. हम भी बहुत हैं..!! लेकिन मुस्कुरा के जीने में.. क्या जाता है..!!
जिंदगी जब तुझको समझा
जिंदगी जब तुझको समझा, मौत फिर क्या चीज है ऐ वतन तू हीं बता, तुझसे बड़ी क्या चीज है|
इश्क लिखना चाहा तो
इश्क लिखना चाहा तो कलम भी टूट गयी ये कहकर अगर लिखने से इश्क मिलता तो आज इश्क से जुदा होकर कोई टूटता नही…
बाँध लूं हाथ में
बाँध लूं हाथ में, या सीने से लगा लूँ तुम को, दिल में आता है कि ताबीज बना लूं तुम को !!!
उसके खत जला कर
उसके खत जला कर राख़ का सुरमा आँखों में लगा ली, अब मुझे इश्क़ की नज़र नहीं लगेगी…।
इंतज़ार है हमे
इंतज़ार है हमे आपके आने का, वो नज़रे मिला के नज़रे चुराने का, मत पूछ ए-सनम दिल का आलम क्या है, इंतज़ारा है बस तुझमे सिमट जाने का…
सिर्फ मेरी लगती है
तू मुझे अच्छी या बुरी नहीं लगती तू मुझे सिर्फ मेरी लगती है ।