पत्थर की दुनिया जज़्बात नही

पत्थर की दुनिया जज़्बात नही समझती,दिल में क्या है वो बात नही समझती,तन्हा तो चाँद भी सितारों के बीच में है,पर चाँद का दर्द वो रात नही समझती

उस दिल की बस्ती में

उस दिल की बस्ती में आज अजीब सा सन्नाटा है, जिस में कभी तेरी हर बात पर  महफिल सजा करती थी।

इस शहर में

इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं होठों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं|

हँसी यूँ ही नहीं आई है

हँसी यूँ ही नहीं आई है इस ख़ामोश चेहरे पर…..कई ज़ख्मों को सीने में दबाकर रख दिया हमने

उन चराग़ों में

उन चराग़ों में तेल ही कम था क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे|

कभी ये लगता है

कभी ये लगता है अब ख़त्म हो गया सब कुछ कभी ये लगता है अब तक तो कुछ हुआ भी नहीं

खो गई है मंजिलें

खो गई है मंजिलें, मिट गए हैं रस्ते, गर्दिशें ही गर्दिशें, अब है मेरे वास्ते |

मनाने की कोशिश

मनाने की कोशिश तो बहुत की हमनें…पर जब वो हमारे लफ़्ज ना समझ सके.. तो हमारी खामोशियों को क्या समझेंगे|

जब तक बिके न थे

जब तक बिके न थे हम, कोई हमें पूछता न था, तूने खरीद के हमें, अनमोल कर दिया |

ताल्लुक़ कौन रखता है

ताल्लुक़ कौन रखता है किसी नाकाम से…! लेकिन, मिले जो कामयाबी सारे रिश्ते बोल पड़ते हैं…! मेरी खूबी पे रहते हैं यहां, अहल-ए-ज़बां ख़ामोश…! मेरे ऐबों पे चर्चा हो तो, गूंगे बोल पड़ते हैं…!!

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