शहर के परिन्दे भी

शहर के परिन्दे भी जानते है पता मेरा, बस तुम्हारे ही कदम इस चौखट पर पड़े नहीं !!

मत पूछ मेरे जागने की

मत पूछ मेरे जागने की बजह ऐ-चांद, तेरा ही हमशक्ल है वो जो मुझे सोने नही देता….

तकिये के नीचे दबा कर

तकिये के नीचे दबा कर रखे है तुम्हारे ख़याल, एक तस्वीर , बेपनाह इश्क़ और बहुत सारे साल.

सीधा साधा दीखता हूँ..

सीधा साधा दीखता हूँ.. अब रोल बदल दूंगा, जिसदिन जिद में आ गया माहौल बदल दूंगा

घुट घुट के जीता रहे

घुट घुट के जीता रहे फ़रियाद न करे, लाएँ कहाँ से, ऐसा दिल तुम्हें याद न करे…

दाद न देंगे तो

दाद न देंगे तो भी शेर बेहतरीन रहेंगे सजदा न भी करे ख़ुदा ख़ुदा ही रहेंगे…

मैं थक गया था

मैं थक गया था परवाह करते-करते…..जब से लापरवाह हूँ, आराम सा हैं..

पानी भी क्या अजीब चीज़ है

पानी भी क्या अजीब चीज़ है नजर उन आँखों में आता है जिनके खेत सूखे हैं

बहुत संभल के

बहुत संभल के चलने से….. थक गया है दिल अब लड़खड़ा के धड़ाम से……. गिरने को जी करता है

जिस्म के घाव तो

जिस्म के घाव तो, भर ही जायेंगे एक दिन… खेरियत उनकी पूछो, जिनके दिल पर वार हुआ है…

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