मिल ही जायेगा हमको भी कोई न कोई टूट कर चाहने वाला… अब शहर का शहर तो,बेवफा नही हो सकता॥
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ज़िन्दा इन्सान के लिए हैं…..
रुकावटे तो ज़िन्दा इन्सान के लिए हैं….. मय्यत के लिए तो सब रास्ता छोड़ देते हैं…. ..
कुछ इस क़दर है
ज़माने में गद्दारी का आलम कुछ इस क़दर है…!!!! … साहिब…… कि सरहद पर खडा जवान भी सोचता होगा,,, हमला बाहर से होगा या अंदर से ?
जाकर खरीद लो
बिकने वाले और भी है जाओ जाकर खरीद लो हम किमत से नही किस्मत से मिला करते है
तू क्या लगायेगी
मेरे बर्दाश्त करने का अंदाजा तू क्या लगायेगी, तेरी उम्र से कहीं ज्यादा मेरे जिस्म पर जख्मो के निशाँ हैं..
कम्बख्त दिल के
जिस नगर भी जाएँ.. किस्से है कम्बख्त दिल के..कोई देके रो रहा है.. तो कोई लेके रो रहा है..॥
उनका कोई कसूर नहीं
वो छोड़ के गए हमें न जाने उनकी क्या मजबूरी थी; खुदा ने कहा इसमें उनका कोई कसूर नहीं ; ये कहानी तो मैंने लिखी ही अधूरी थी।
तुम उदास क्यों हो
लोग तो लिखते रहे मेरी आँखों पर गज़ले, तुमने इतना भी ना पूछा, “तुम उदास क्यों हो”
मै खुश तो हूँ
कही दर्द की झीले, तो कही लहजे की करवटेँ.. उससे कहना मै खुश तो हूँ, मगर मेरा हर लफ़्ज रोता है..!
तुमने इतना भी
लोग तो लिखते रहे मेरी आँखों पर गज़ले, तुमने इतना भी ना पूछा, “तुम उदास क्यों हो”