ये सगंदिलो की दुनिया है,संभलकर चलना गालिब, यहाँ पलकों पर बिठाते है, नजरों से गिराने के लिए…
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आँखों में भी
आँखों में भी कुछ सपने सो जाते हैं सपनों में भी मुश्किल जब उनका आना लगता है
क्या इल्जा़म लगाओगे
क्या इल्जा़म लगाओगे मेरी आशिकी पर, हम तो सांस भी तुम्हारी यादों से पूछ कर लेते है..
कब गुरुर बढ जाए ..
आईने का जाने कब गुरुर बढ जाए … पत्थरों से भी दोस्ती निभाना जरुरी है..
दर्द आसानी से
दर्द आसानी से कब ‘पहलू’ बदल के निकला आँख का तिनका बहुत आँख ‘मसल’ के निकला..
ऐसा तो कभी हुआ नहीं
ऐसा तो कभी हुआ नहीं, गले भी मिले, और छुआ नहीं!
दरवाजे पर लिखा था..
दरवाजे पर लिखा था…मुझे बुलाना मत, मैं बहुत दुखी हूँ सच्चा मित्र अंदर जाकर बोला…मुझे पढ़ना नहीं आता है।।
ये ना पूछ कि
ये ना पूछ कि शिकायतें कितनी हैं तुझसे, ऐ जिंदगी, सिर्फ ये बता कि कोई और सितम बाकी तो नहीं?
मुद्दत के बाद
मुद्दत के बाद उसने जो आवाज दी मुझे… कदमों की क्या बिसात, साँसें ही थम गयी…!!!
ज़िन्दगी सुन तू यही
ज़िन्दगी सुन तू यही पे रुकना…!! हम हालात बदल के आते है….