सुनकर ज़माने की

सुनकर ज़माने की बातें तू अपनी अदा मत बदल, यकीं रख अपने खुदा पर यूँ बार बार खुदा मत बदल……

कितनी मासूम सी है

कितनी मासूम सी है ख्वाहिस आज मेरी, कि नाम अपना तेरी आवाज़ से सुनूँ !!

वो तब भी थी

वो तब भी थी अब भी है और हमेशा रहेगी ये मोहब्बत है …. पढाई नही जो पूरी हो जाए…..

उजागर हो गई

उजागर हो गई होतीं वो करतूतें सभी काली, ख़बर को आम होने से मगर अखबार ने रोका

दिल की किताब में

दिल की किताब में गुलाब उनका था, रात की नींद में ख्वाब उनका था, कितना प्यार करते हो जब हमने पूछा, मर जाएंगे तुम्हारे बिना ये जवाब उनका था…

बेवजह दीवारों पर

बेवजह दीवारों पर इल्ज़ाम है, बँटवारे का… लोग मुद्दतों से एक कमरे में अलग-अलग रहते है…

याद है मुझे रात थी

याद है मुझे रात थी उस वक़्त जब शहर तुम्हारा गुजरा था फिर भी मैने ट्रेन की खिडकी खोली थी… काश मुद्दतो बाद तुम दिख जाओ कहीं….

आदमी को परखने की

आदमी को परखने की इक ये भी निशानी है… गुफ़्तगू ही बता देती है कौन ख़ानदानी है

कौन कहता है आसमां में

कौन कहता है आसमां में सुराख़ हो नहीं सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों!

तुझे जमाने का डर है

तुझे जमाने का डर है, मुझसे बात न कर, दिल में कोई और है, तो मुझसे बात न कर ….

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